1977 Lok Sabha elections: इमरजेंसी विरोधी लहर में Indira Gandhi खुद भी चुनाव हार गयीं

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‘बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने, कहने सुनने को बहुत है अफ़साने,
खुली हवा में जरा सांस तो ले लें
कब तक रहेगी आजादी ..भला कौन जाने|’

उपरोक्त पंक्तियाँ अटल बिहारी वाजपेयी ने जनवरी 1977 को दिल्ली के रामलीला मैदान में कही थी| अपनी भाषण शैली के लिए लोकप्रिय अटल जी ने इस पंक्ति में देश के राजनीतिक हालत का वर्णन कर दिया| तत्कालीन इंदिरा गाँधी (Indira Gandhi) सरकार ने १८ महीने बाद इमरजेंसी (Emergency) हटा कर आम चुनाव की घोषणा की| कई विपक्ष के नेताओं को जेल से रिहा किया गया, जिनमे ‘लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, जीवतराम कृपलानी, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्णा आडवाणी प्रमुख थे|

इमरजेंसी के दौरान लोकसभा का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया था और इसलिए आम चुनाव 1977 (1977 Lok Sabha elections) में कराए गए| लेकिन इस आम चुनाव के पहले की कहानी आपको जानना बेहद आवश्यक है|

इमरजेंसी क्यों लगाई गयी

1971 के आम चुनाव (1971 Lok Sabha elections) में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अप्रत्याशित विजय हासिल की थी| ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर इंदिरा गाँधी ने ना सिर्फ कांग्रेस के ‘सिंडिकेट’ खेमे को परास्त किया था बल्कि एक ताक़तवर नेता बनकर उभरी थीं| उसी साल के अंत में भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण से इंदिरा की लोकप्रियता और बढ़ चुकी थी|

मगर 1973 आते आते इंदिरा गाँधी के खिलाफ आवाज़ उठना शुरू हो गयी| उस साल दिसंबर में अहमदाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने महंगे मेस के बिल और ख़राब भोजन की क्वालिटी को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया| निशाने पर थी राज्य में शासन कर रही चिमनभाई पटेल की सरकार|

हॉस्टल मेस को लेकर किया गया स्ट्राइक जल्द ही राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन बन गया| इंडिया टुडे के अनुसार 10 जनवरी 1974 को अहमदाबाद और वड़ोदरा में बंद का आह्वान किया गया| इस दौरान हिंसा भी देखने को मिली| दबाव में आकर इंदिरा गाँधी ने चिमनभाई से इस्तीफ़ा मांग लिया|

मोरारजी देसाई, जो 1966 में प्रधानमंत्री के पद की दौड़ में इंदिरा से पराजित हो गए, अनिश्चित भूख हड़ताल पर चले गए| विधानसभा को भंग कराया गया और चुनाव हुए|

मगर इंदिरा विरोधी आंदोलन गुजरात तक ही सीमित नहीं था| महात्मा बुद्ध की धरती बिहार में मार्च 1974 में पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया| राज्य में कांग्रेस सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिसिया शक्ति का सहारा लिया|

पुलिस एक्शन से पूरे बिहार में कांग्रेस विरोधी आंदोलन और तेज़ हो गया| जयप्रकाश नारायण, जिन्होंने इंदिरा गाँधी के कैबिनेट में मंत्रिपद का ऑफर ठुकरा गया था, इस छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने आगे आए|

उसी साल जून में जेपी ने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नारा दिया और छात्र आंदोलन शीघ्र ही एक देशव्यापी इंदिरा विरोधी कैंपेन बन गया| इससे पहले की कांग्रेस संभल पाती, ट्रेड यूनियन नेता जॉर्ज फर्नांडेस के नेतृत्व में पूरे देश में 14 लाख रेलवे कर्मचारियों ने ‘रेल रोको’ हड़ताल कर दिया| तीन हफ्ते चले इस हड़ताल ने देश पर ब्रेक ही लगा दिया| मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस सरकार ने बीस से पचास हज़ार रेल कर्मचारियों को गिरफ्तार करवाया था|

मगर इंदिरा गाँधी को सबसे बड़ा झटका 12 जून 1974 को लगा जब इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने प्रधानमंत्री के १९७१ संसदीय चुनाव को अयोग्य ठहरा दिया| हाई कोर्ट के फैसले की खबर आग की तरह फ़ैल गयी| इंदिरा पर आरोप था की उन्होंने 1971 में रायबरेली के चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग कर राज नारायण के विरुद्ध गैरकानूनी तरीके से जीत हासिल की थी| विपक्ष सड़कों पर आ गया और इंदिरा गाँधी पर इस्तीफ़ा का दबाव बढ़ गया|

24 जून को इंदिरा गाँधी को सर्वोच्च न्यायालय के तरफ से राहत मिली| सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार वह प्रधानमंत्री के पद पर बने रह सकती थी मगर संसद के किसी भी प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले सकती थी| विपक्ष की और से बढ़ते दबाव को देख उसी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को सुझाव दे संविधान के खंड ३५२ के अंतर्गत इमरजेंसी लगवा दी|

उसी रात तमाम अख़बारों के प्रेस की बिजली सप्लाई काट दी गयी और कई विपक्ष नेता तथा पत्रकारों को हिरासत में ले लिया गया| अगले 18 महीने तक देश में जो हुआ वह लोकतंत्र के इतिहास में एक काला धब्बा माना जाता है| हड़तालों और आंदोलनों को गैरकानूनी करार दिया गया| विरोध करने पर मेंटेनेंस ऑफ़ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) के तहत गिरफ़्तारी की जाती थी| इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के छोटे पुत्र संजय गाँधी की भूमिका काफी विवादस्पद है| देशव्यापी नसबंदी कार्यक्रम और डेमोलिशन ड्राइव के कारण कांग्रेस के खिलाफ काफी रोष था|

आख़िरकार जनवरी 1977 को इंदिरा ने अपनी जीत को तय मानते हुए इमरजेंसी हटाने का फैसला किया| आम चुनाव की घोषणा हुई और विपक्ष के नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया| भारतीय लोक दाल, कांग्रेस (ओ) भारतीय जन संघ और सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर जनता पार्टी बनाई जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चौधरी चरण सिंह थे|

1977 आम चुनाव
छठी लोकसभा चुनाव मार्च 1977 में हुए| इतिहास में पहली बार कांग्रेस बहुमत पाने में असफल रही| बिहार, उत्तर प्रदेश, हरयाणा और हिमाचल प्रदेश में पार्टी एक भी सीट जीत नहीं पायी| कांग्रेस इस बार सिर्फ 154 सीटें जीत पाई| खुद इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव हार गयी| वहीँ जनता पार्टी 295 सीटों के साथ देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में सफल हुई|

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